अहल ए दुनिया वाक़िफ़ ए असरार ए पिन्हाँ हो गए
दास्तान ए ग़म सुना कर हम पशेमाँ हो गए,
मेरे आँसू उन की आँखों में नुमायाँ हो गए
अब परेशाँ करने वाले ख़ुद परेशाँ हो गए,
पुर्सिश ए ग़म करने वाले बढ़ गया कुछ और ग़म
चंद क़तरे आँसुओं के बढ़ के तूफ़ाँ हो गए,
जो ख़ुलूस ए बंदगी के मुंतज़िर थे आज तक
मेरे सज्दों से वो नक़्श ए पा नुमायाँ हो गए,
बाग़बाँ से क्या शिकायत उस का दामन पाक है
अब तो ख़ुद गुलचीं भी गुलशन के निगहबाँ हो गए,
एक हमारी ही नज़र नाकाम ए साहिल क्या रही
जाने कितने ही सफ़ीने नज़्र ए तूफ़ान हो गए,
इश्क़ का अंजाम ऐ दिल कितना इबरतनाक है
मेरी हालत देखने वाले परेशाँ हो गए,
जुज़्व ए फ़ितरत कब बना दर्द ए मोहब्बत क्या ख़बर
इस क़दर हम शौक़ महव ए हुस्न ए जानाँ हो गए..!!
~विशनू कुमार शौक

























