अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडा

अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडा
तो आ लिपटिए गले से ऐ जाँ झमक से कर झप चराग़ ठंडा,

हम और तुम जाँ अब इस क़दर तो मोहब्बतों में हैं एक तन मन
लगाया तुम ने जबीं पे संदल हुआ हमारा दिमाग़ ठंडा,

लबों से लगते ही हो गई थी तमाम सर्दी दिल-ओ-जिगर में
दिया था साक़ी ने रात हम को कुछ ऐसे मय का अयाग़ ठंडा,

दरख़्त भीगे हैं कल के मेंह से चमन चमन में भरा है पानी
जो सैर कीजे तो आज साहब अजब तरह का है बाग़ ठंडा,

वही है कामिल नज़ीर इस जा वही है रौशन दिल ऐ अज़ीज़ो
हवा से दुनिया की जिस के दिल का न होवे हरगिज़ चराग़ ठंडा..!!

~नज़ीर अकबराबादी

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