अब जी हुदूद ए सूद ओ ज़ियाँ से गुज़र गया
अच्छा वही रहा जो जवानी में मर गया,
पलकों पे आ के रुक सी गई थी हर एक मौज
कल रो लिए तो आँख से दरिया उतर गया,
तुझ से तो दिल के पास मुलाक़ात हो गई
मैं ख़ुद को ढूँढने के लिए दर ब दर गया,
शाम ए वतन कुछ अपने शहीदों का ज़िक्र कर
जिन के लहू से सुब्ह का चेहरा निखर गया,
आख़िर बहार को तो जो करना था कर गई
इल्ज़ाम ए एहतियात गिरेबाँ के सर गया,
ज़ंजीर मातमी है तुम ऐ आक़िलान ए शहर
अब किस को पूछते हो दिवाना तो मर गया..!!
~मुस्तफ़ा ज़ैदी