अब आप रह ए दिल जो कुशादा नहीं रखते
हम भी सफ़र ए जाँ का इरादा नहीं रखते,
पीना हो तो एक जुरआ ए ज़हराब बहुत है
हम तिश्ना दहन तोहमत ए बादा नहीं रखते,
अश्कों से चराग़ाँ है शब ए ज़ीस्त सो वो भी
कोताही ए मिज़्गाँ से ज़ियादा नहीं रखते,
ये गर्द ए रह ए शौक़ ही जम जाए बदन पर
रुस्वा हैं कि हम कोई लबादा नहीं रखते,
हर गाम पे जुगनू सा चमकता है जो दिल में
हम इस के सिवा मिशअल ए जादा नहीं रखते,
सुर्ख़ी नहीं फूलों की तो ज़ख़्मों की शफ़क़ है
दामान ए तलब हम कभी सादा नहीं रखते..!!
~शकेब जलाली
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