जी भर कर रोने को करता है दिल…

जी भर कर रोने को करता है दिल
आज पलकें भिगोने को करता है दिल,

नहीं मालूम कुछ भी सबब इसका
बस दुखी होने को करता है दिल,

किसी की याद सता रही है बहुत
शब गए भी न सोने को करता है दिल,

क्या ही खून रुलाता है गम ए हिज्राँ में
तन्हाई में फूट के रोने को करता है दिल,

कोई हद भी है सितम ज़रीफ़ी की ?
हनूज़ चाक गिरेबानी करने को करता है दिल,

जिस के नाम पर चिढ जाते है हम अक्सर
उसी पर जान छिडकने को करता है दिल..!!

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