मेरी आँखों को बख़्शे हैं आँसू

मेरी आँखों को बख़्शे हैं आँसू
दिल को दाग़ ए अलम दे गए हैं,

इस इनायत पे क़ुर्बान जाऊँ
प्यार माँगा था ग़म दे गए हैं,

देने आए थे हम को तसल्ली वो
तसल्ली तो क्या हम को देते,

तोड़ कर का’बा ए दिल हमारा
हसरतों के सनम दे गए हैं,

दिल तड़पता है फ़रियाद कर के
आँख डरती है आँसू बहा के,

ऐसी उल्फ़त से वो जाते जाते
मुझ को अपनी क़सम दे गए हैं,

मरहबा मयकशों का मुक़द्दर
अब तो पीना इबादत है अनवर,

आज रिंदों को पीने की दावत
वाइ’ज़ ए मोहतरम दे गए हैं..!!

~अज्ञात

हक़ीक़त का अगर अफ़्साना बन जाए तो क्या कीजे

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