हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना,
ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है
मरज़ में मुब्तला कर के मरीज़ों को दवा देना,
बलाएँ लेते हैं उन की हम उन पर जान देते हैं
ये सौदा दीद के क़ाबिल है क्या लेना है क्या देना,
ख़ुदा की याद में महवियत ए दिल बादशाही है
मगर आसाँ नहीं है सारी दुनिया को भुला देना..!!
~अकबर इलाहाबादी


























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