दामन पे वो अश्कों की तहरीर नज़र आई
हर ग़म में मोहब्बत की तस्वीर नज़र आई,
ये फ़स्ल ए बहाराँ का एजाज़ मआज़ अल्लाह
ज़ंजीर न थी लेकिन ज़ंजीर नज़र आई,
आईना ए इरफ़ाँ में जब हुस्न ए अज़ल देखा
हर बर्ग की जुम्बिश में तक़दीर नज़र आई,
ऐ शाम ए अलम रुक जा एक अश्क ने लौ दी है
अब तुझ से निभाने की तदबीर नज़र आई,
गुलशन की फ़ज़ाओं ने कैसा ये चलन बदला
फूलों में भी काँटों की तासीर नज़र आई,
हासिल है सुकूँ लेकिन बेताब निगाहें हैं
आख़िर ये हमें किस की तस्वीर नज़र आई,
नाकामी ए पैहम से जब टूट गई हिम्मत
तस्कीन की एक सूरत तक़दीर नज़र आई,
आईना ए गुलशन पर जब चश्म ए ख़िरद ठहरी
फूलों के भी पैरों में ज़ंजीर नज़र आई,
हम उन से शिकायत भी ऐ शौक़ कहाँ करते
हर गाम पे जब अपनी तक़्सीर नज़र आई..!!
~विशनू कुमार शौक

























