मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं,

मेरा कुफ़्र हासिल ए ज़ोहद है मेरा ज़ोहद हासिल ए कुफ़्र है
मेरी बंदगी वो है बंदगी जो रहीन ए दैर ओ हरम नहीं,

मुझे रास आएँ ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार ए वफ़ा तो है मुझे ऐतबार ए सितम नहीं,

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं,

न वो शान ए जब्र ए शबाब है न वो रंग ए क़हर ए इताब है
दिल ए बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं,

न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी मुझे ऐ शकील न ढूँढिए
मैं किसी का हुस्न ए ख़याल हूँ मेरा कुछ वजूद ओ अदम नहीं..!!

~शकील बदायूनी

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