अभी तो और भी दिन बारिशों के आने थे

अभी तो और भी दिन बारिशों के आने थे
करिश्मे सारे उसे आज ही दिखाने थे,

हिक़ारतें ही मिलीं हम को ज़ंग आलूदा
दिलों में यूँ तो कई क़िस्म के ख़ज़ाने थे,

ये दश्त तेल का प्यासा न था ख़ुदा वंदा
यहाँ तो चार छे दरिया हमें बहाने थे,

किसी से कोई तअल्लुक़ रहा न हो जैसे
कुछ इस तरह से गुज़रते हुए ज़माने थे,

परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए अल्वी
उजाड़ उजाड़ दरख़्तों पे आशियाने थे..!!

~मोहम्मद अल्वी

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