क़िस्सा अभी हिजाब से आगे नहीं बढ़ा
मैं आप, वो जनाब से आगे नहीं बढ़ा,
मुद्दत हुई किताब ए मुहब्बत शुरू किये
लेकिन मैं पहले बाब से आगे नहीं बढ़ा,
लम्बी मुसाफतें हैं मगर उस शहसवार का
पाँव अभी रकाब से आगे नहीं बढ़ा,
तूल ए कलाम के लिए मैंने किये सवाल
वो मुख़्तसर जवाब से आगे नहीं बढ़ा,
लोगो ने संग ओ ख़िश्त किले बना लिए
अपना महल तो ख़्वाब से आगे नहीं बढ़ा,
वो तेरी चाल ढाल के बारे में क्या कहे ?
जो अपने एहतिसाब से आगे नहीं बढ़ा,
रुखसार का पता नहीं आँखें तो ख़ूब हैं
दीदार अभी नक़ाब से आगे नहीं बढ़ा,
वो लज्ज़त ए गुनाह से महरूम ही रहा
जो ख्वाहिश ए सवाब से आगे नहीं बढ़ा..!!
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