फिर रफ़ूगर ने भी ये कह के मुझे मोड़ दिया
जा यहाँ पर तो कोई ज़ख़्म नहीं सिलते अब,
तुमने उस बाग़ के बारे में सुना ही होगा
जिसमें पौधे तो हैं,पर फूल नहीं खिलते अब,
ज़ुल्म भी होगा भला इससे ज़्यादा कोई
दर्द क़ायम है मगर अश्क़ नहीं मिलते अब,
तेरे हिज्रां में नाक़ाहत का है ऐसा आलम
तश्नगी आती है पर होंठ नहीं हिलते अब,
मेरी आंखों में फ़क़त आब है बेफ़िक्र रहो
मेरे आंसू तो लहू बनके नहीं गिरते अब..!!

























