दोस्ती है धर्म मेरा ज़ात मेरी
दुश्मनों से पूछिए औक़ात मेरी,
इश्क़ क्या है जाल है मैं ने कहा था
तुम मगर सुनते कहाँ हो बात मेरी,
सामने था वो मगर कुछ फ़ासले पर
सोचिए कैसे कटी है रात मेरी ?
आप से फिर हो रहा है इश्क़ मुझ को
इश्क़ में फिर हो रही है मात मेरी..!!
~सतीश दुबे सत्यार्थ

























