बदला मिज़ाज मैं ने जो अपना हवा के साथ
दरिया था मेरे साथ किनारा हवा के साथ,
फिर यूँ हुआ कि ख़्वाबसरा में हवा चली
फिर यूँ हुआ कि उड़ गया सपना हवा के साथ,
मैं बुझ गया हूँ आप की सिर्फ़ एक फूँक से
सदियों लड़ा हूँ वर्ना मैं तन्हा हवा के साथ,
दुनिया से इख़्तिलाफ़ है इस बात पर मुझे
जिस सम्त की हवा चले दुनिया हवा के साथ,
तेरे बदन को छू के गुज़रती है किस लिए
बस इस पे इख़्तिलाफ़ है मेरा हवा के साथ,
मंज़िल ख़ुलूस की न मुझे आज तक मिली
इस रास्ते पे काश न चलता हवा के साथ,
इक़रार क्या कहूँ कि वो ख़ुशबू सा एक शख़्स
चारों तरफ़ वो और भी महका हवा के साथ..!!
~इक़रार मुस्तफ़ा

























