सहरा के संगीन सफ़र में आबरसानी कम न पड़े

सहरा के संगीन सफ़र में आबरसानी कम न पड़े
सारी आँखें भर कर रखना देखो पानी कम न पड़े,

ज़ेहन मुसलसल क़िस्से सोचें होंठ मुसलसल ज़िक्र करें
सुब्ह तलक ज़िंदा रहना है कहीं कहानी कम न पड़े,

इश्क़ ने सौंपा है मुझ को एक सहरा की तामीर का काम
और हिदायत की है ज़र्रा भर वीरानी कम न पड़े,

मेरी शह रग काटी उसने और कहा शोख़ी के साथ
तू सच्चा आशिक़ है तो फिर देख रवानी कम न पड़े,

थोड़ा थोड़ा मरता भी रहता हूँ मैं जीने के साथ
ताकि वक़्त ए ज़रूरत मरने की आसानी कम न पड़े,

सज्दा करने को होता हूँ एक बहुत ही बड़े बुत का
और फिर सोचता हूँ ये छोटी सी पेशानी कम न पड़े,

हमें छुपाने को दुनिया ने खोल दिए कपड़ों के थान
चाक गरेबानी ये तेरा ज़ोर ए उर्यानी कम न पड़े,

तुम फ़रहत एहसास बस अपने आप को मरने मत देना
ताकि दफ़्तर ए दुनिया में दख़्ल ए इंसानी कम न पड़े..!!

~फ़रहत एहसास

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