ज़माने की हवा बदली उधर रंग ए चमन बदला
गुलों ने जब रविश बदली अनादिल ने वतन बदला,
तरीक़ा आश्नाई का कभी ऐसा न बदला था
कि चाल उश्शाक़ ने बदली हसीनों ने चलन बदला,
बदलते आए हैं यूँ तो हमेशा दौर गर्दूं के
न ऐसा भी कि हम बदले हमारा कुल जतन बदला,
मक़ासिद मज़हब ओ मिल्लत के बदले दौर ए आलम ने
सहाइफ़ की शरह बदली किताबों का मतन बदला,
बदल डाला है ऐसा मग़रिबी तहज़ीब ने हम को
मज़ाक़ ए ख़वान ए निअमत और तर्ज़ ए पैरहन बदला,
पुरानी चाल बेढंगी हमारी देखें कब बदले
अभी तक जुग ही बदले थे ग़ज़ब ये है क़रन बदला,
न बदला पर न बदला हाए तर्ज़ ए मअशरत क़ौमी
अगरचे सारी दुनिया का हुनर और इल्म ओ फ़न बदला,
निज़ाम ए शाएरी में हाए आया इंक़लाब ऐसा
कि शान ए नज़्म बदली और अंदाज़ ए सुख़न बदला,
सलीक़ा इंतिक़ाद ए जिंस ए हिरफ़त का नहीं हमको
ज़र ए ख़ालिस से अबरेशम नुमा यूरोप ने सन बदला,
न बदला है न बदलेगा फ़क़त क़ानून ए इस्लामी
क़मर जब तक कि क़ुदरत ने न ये चर्ख़ ए कुहन बदला..!!
~सय्यद तसलीम हैदर क़मर
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