अहिंसा की शमशीर चमकी इसी दिन

अहिंसा की शमशीर चमकी इसी दिन
ग़ुलामी की ज़ंजीर टूटी इसी दिन,

गुलिस्ताँ की तक़दीर बदली इसी दिन
उठो आज ख़ुशियों के हम गीत गाएँ,

चलो अपनी धरती को दुल्हन बनाएँ
खुले कैसे कैसे भरम दुश्मनों के,

रहे फिर न बाक़ी सितम दुश्मनों के
मिटे इस ज़मीं से क़दम दुश्मनों के,

उठो आज ख़ुशियों के हम गीत गाएँ
चलो अपनी धरती को दुल्हन बनाएँ,

इसी दिन की ख़ातिर बड़े ग़म उठाए
ज़मीं आसमाँ के क़ुलाबे मिलाए,

ज़रा भी न अपने क़दम डगमगाए
उठो आज ख़ुशियों के हम गीत गाएँ,

ये वो दिन है हम जिस की बरकत को समझें
यही दिन है वो जिस की क़ीमत को समझें
यही दिन है वो जिस की अज़्मत को समझें,

तिरंगे को हम और ऊँचा उठा दें
चराग़ों से हर बाम ओ दर को सजा दें,

ज़माने को ये सरख़ुशी भी दिखा दें
उठो आज ख़ुशियों के हम गीत गाएँ
चलो अपनी धरती को दुल्हन बनाएँ..!!

~मसूदा हयात


Discover more from Hindi Gazals :: हिंदी ग़ज़लें

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply