तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
दिल मिले तो जान के दुश्मन क़बीले हो गए,
आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए
मेरी आँखें सुर्ख़ तेरे हाथ पीले हो गए,
अब तेरी यादों के निश्तर भी हुए जाते हैं कुंद
हमको कितने रोज़ अपने ज़ख़्म छीले हो गए,
कब की पत्थर हो चुकी थीं मुंतज़िर आँखें मगर
छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए,
अब कोई उम्मीद है शाहिद न कोई आरज़ू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए..!!
~शाहिद कबीर