ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया

ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
कटा के पर को परिंदा उड़ान से भी गया,

किसी के हाथ से निकला हुआ वो तीर हूँ जो
हदफ़ को छू न सका और कमान से भी गया,

भुला दिया तो भुलाने की इंतिहा कर दी
वो शख़्स अब मेंरे वहम ओ गुमान से भी गया,

तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया,

पराई आग में कूदा तो क्या मिला शाहिद
उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया..!!

~शाहिद कबीर

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply