इश्क़ में ग़ैरत ए जज़्बात ने रोने न दिया

इश्क़ में ग़ैरत ए जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया,

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया,

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी ए हालात ने रोने न दिया,

तुझ से मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी ए वक़्त ए मुलाक़ात ने रोने न दिया,

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें फ़ाकिर
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया..!!

~सुदर्शन फ़ाकिर

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