है हकीक़त अज़ाब रहने दो
टूट जाएगा ख़्वाब रहने दो,
कब सज़ावार हूँ इनायत का
यूँ ही ज़ेर ए इताब रहने दो,
तुम जला दो किताब ए बस्ती को
एक मुहब्बत का बाब रहने दो,
बे खुदी में सवाल कर बैठा
चुप ही रहो, लाजवाब रहने दो,
या उतारो ज़मीं पे चाँद कोई
या उन्हें ही बेनक़ाब रहने दो,
लोग रखे हैं अब नज़र हम पर
फ़रिश्तों तुम हिसाब रहने दो,
देख बैठे है पारसाओं को
हम को यूँ ही ख़राब रहने दो,
मर न जाएँ सुकून के मारे
दिल में कुछ इज़्तिराब रहने दो..!!