ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे
दर्द के सब क़िस्से याद ए माज़ी हो जाएँगे,
साँसें लेती तस्वीरों को चुप लग जाएगी
सारे नक़्श करिश्मों से आरी हो जाएँगे,
आँखों से मस्ती न लबों से अमृत टपकेगा
शीशा ओ जाम शराबों से ख़ाली हो जाएँगे,
खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगी
कुछ हम भी तन्हाई के आदी हो जाएँगे,
कूचा ए जाँ पर गहरे बादल छाए रहेंगे ज़ेब
उस की खिड़की के पर्दे भारी हो जाएँगे..!!
~ज़ेब ग़ौरी