उस गुल को भेजना है मुझे ख़त…

उस गुल को भेजना है मुझे ख़त सबा के हाथ
इस वास्ते लगा हूँ चमन की हवा के हाथ,

बर्ग ए हिना ऊपर लिखो अहवाल ए दिल मेरा
शायद कि जा लगे वो किसी मीरज़ा के हाथ,

आज़ाद हो रहा हूँ दो आलम की क़ैद से
मीना लगा है जब से कि कुछ बेनवा के हाथ,

मरता हूँ मीरज़ाइ ए गुल देख हर सहर
सूरज के हाथ चुनरी तो पंखा सबा के हाथ,

‘मज़हर’ छुपा के रख दिल ए नाज़ुक को अपने तू
ये शीशा बेचना है किसी मीरज़ा के हाथ..!!

~मज़हर मिर्ज़ा जान ए जानाँ

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