न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है

न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी है,

किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है,

वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मेरे हाथ से सँवरनी है,

तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुंदरों से अकेले में बात करनी है,

हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है
अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है,

तेरे ज़ियाँ पे मैं अपना ज़ियाँ न कर बैठूँ
कि मुझ मुरीद का मुर्शिद उवैस क़रनी है..!!

~तहज़ीब हाफ़ी

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