न है बुतकदा की तलब मुझे न हरम के दर की तलाश है
जहाँ लुट गया है सुकून ए दिल उसी रहगुज़र की तलाश है,
मेरे ज़ौक़ ए सज्दा ए बंदगी को अता हुई है ये बे ख़ुदी
तेरे संग ए दर पे पहुँचे भी तेरे संग ए दर की तलाश है,
तू हरम में जिस को है ढूँढता मुझे बुतकदा वो मिल गया
तुझे क्या मलाल है ज़ाहिदा ये नज़र नज़र की तलाश है,
ऐ तबीब हट जा परै ज़रा मैं मरीज़ ए इश्क़ हूँ ला दवा
मुझे जिस ने दर्द अता किया उसी चारागर की तलाश है,
जो ग़म ए हयात को लूट ले उसी राहज़न की है जुस्तुजू
जो चराग़ ए मंज़िल ए इश्क़ हो उसी राहबर की तलाश है,
मेरी ज़िंदगी है ये ज़िंदगी तेरे इश्क़ की न बुझे लगी
तेरे ढूँढने में जो गुम हुई मुझे उस नज़र की तलाश है,
ये है वो मक़ाम कि जिस जगह ये अमीर ए साबरी खो गया
न रही है जल्वों की आरज़ू न ही जल्वागर की तलाश है..!!
~अमीर बख़्श साबरी
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