मुकम्मल मोहब्बत का दस्तूर देखा
यहीं सारी दुनिया को मजबूर देखा,
हर एक सम्त मैंने नया तूर देखा
जिधर आँख उठाई उधर नूर देखा,
फ़रेब आश्नाओं को मुख़्तार पाया
सदाक़त पसंदों को मजबूर देखा,
हर एक दौर के साथ दस्तूर बदला
अटल एक क़ुदरत का दस्तूर देखा,
क़दम राह ए उल्फ़त में रखते ही मैंने
हुज़ूर अच्छे अच्छों को मजबूर देखा,
जिन आँखों ने देखी हैं आँखें तुम्हारी
हमेशा उन आँखों को मख़मूर देखा,
किसी ने सर ए तूर दिल में किसी ने
हर एक ने उसे ता ब मक़्दूर देखा,
मोहब्बत के इक़बाल से हुस्न को भी
मोहब्बत का मम्नून ओ मशकूर देखा,
ख़ुदा की क़सम मैंने देखा जहाँ तक
ख़ुदा के सिवा सब को मजबूर देखा,
हुई बाद मुर्दन भी ऐ क़द्र हैरत
जो बनते हुए रूह को हूर देखा..!!
~क़द्र ओरैज़ी