मुझे रंज होगा न मौत का अगर ऐसी मौत नसीब हो
मेरा दम जो निकले तो ऐ ख़ुदा मेरे पास मेरा हबीब हो,
है अबस दवाओं का सोचना न तू फ़िक्रमंद तबीब हो
तू इलाज उस का करेगा क्या जो मरीज़ ए इश्क़ ए हबीब हो,
कर असीर मुझ को ब सद ख़ुशी मगर इतनी अर्ज़ भी सुन मेरी
वहाँ क़ैद कर कि क़फ़स मेरा मेरे आशियाँ के क़रीब हो,
जिसे तेरे हुस्न की हो ख़बर वही चश्म ए इश्क़ है मोतबर
बड़ी ख़ुश नसीब है वो नज़र तेरी दीद जिस को नसीब हो,
शब ओ रोज़ पुरनम ए ग़म ज़दा रहे दर्द ए दिल में जो मुब्तला
वो क़रार पाए तो किस तरह उसे चैन कैसे नसीब हो..!!
~पुरनम इलाहाबादी
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