हर तरफ़ महकी हुई मेरे चमन की ख़ुशबू

हर तरफ़ महकी हुई मेरे चमन की ख़ुशबू
है फ़ज़ाओ में अज़ानों की भजन की ख़ुशबू,

मुझ को विर्से में मिली गंग ओ जमन की ख़ुशबू
मेरी हर साँस में बस्ती है वतन की ख़ुशबू,

छाई रहती है मेंरे सर पे घटाओं की तरह
हाँ ये ख़ुशबू है मेंरी माँ की दुआओं की तरह,

दिल की दुनिया हुई गुलज़ार इसी ख़ुशबू से
शायरी है मेंरी सरशार इसी ख़ुशबू से,

है ये रानाई ए अफ़्कार इसी ख़ुशबू से
है मोअत्तर मेंरा किरदार इसी ख़ुशबू से,

एक दिन मैं इसी ख़ुशबू ही में खो जाऊँगी
ओढ़ कर ख़ाक ए वतन ख़ाक में सो जाऊँगी..!!

~नुसरत मेहदी

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