कुछ लफ्ज़ अगर मुझे मिल जाएँ….

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कुछ लफ्ज़ अगर मुझे मिल जाएँमैं उनमे तुझे तहरीर करूँ, अपनी ज़ात के रंग तुझमे भर करतुझे फिर

धनक के रंग चुरा ले हमारा बस जो चले

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धनक के रंग चुरा ले हमारा बस जो चलेतेरी हथेली में डाले हमारा बस जो चले, बना के

चलो मंज़ूर है मुझको, मुझे कुछ भी सजा दे दो…

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चलो मंज़ूर है मुझकोमुझे कुछ भी सजा दे दोसुनो ! गर मिल नहीं पाएतो एक दूजे से कहते

जब से या रब मैं तेरे इस जहान में हूँ…

जब से या रब मैं

एक मुसलसल से इम्तिहान में हूँजबसे या रब मैं तेरे इस जहान में हूँ, सिर्फ़ इतना सा है

ग़ज़ल को फिर सजा के सूरत ए महबूब लाया हूँ…

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ग़ज़ल को फिर सजा के सूरत ए महबूब लाया हूँसुनो अहल ए सुखन ! मैं फिर नया असलूब

दिल ए गुमशुदा कभी मिल ज़रा

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दिल ए गुमशुदा ! कभी मिल ज़राकिसी ख़ुश्क खाक़ के ढेर परया किसी मकान की मुंडेर पर, दिल

आँखों में नींदों के सिलसिले भी नहीं

aankhon me neendon ke

आँखों में नींदों के सिलसिले भी नहींशिक़स्त ए ख़्वाब के अब मुझमे हौसले भी नहीं, नहीं नहीं !

यूँ ही उम्मीद दिलाते है ज़माने वाले…

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यूँ ही उम्मीद दिलाते है ज़माने वालेकब पलटते है भला छोड़ के जाने वाले, तू कभी देख झुलसते

कागज़ पर तहरीर दिलचस्प दास्तान हूँ मैं…

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हसरतों से भरा क़ब्रिस्तान हूँ मैंआबाद कर मुझे कि वीरान हूँ मैं, तसल्ली दे मुझको कि तू है

तरसती आँखे, उदास चेहरा, नहीफ़ लहज़ा, बगैर तेरे

tarasti-aankhe-udas-chehra

तरसती आँखे, उदास चेहरा, नहीफ़ लहज़ा, बगैर तेरेबिखरी ज़ुल्फे, लिबास उजड़ा, वज़ूद ख़स्ता, बगैर तेरे, अमीक़ जंगल, घप