जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैं…
जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैंवो शरीक़ राह ए सफ़र हुए, जो मेरी तलब मेरी आस थेवही लोग
Hindi Shayari
जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैंवो शरीक़ राह ए सफ़र हुए, जो मेरी तलब मेरी आस थेवही लोग
कभी ऐसा भी होता है ?कि जिसको हमसफ़र जानेकि जो शरीक़ ए दर्द होवही हमसे बिछड़ जाए, कभी
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के, वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र
ये मिस्रा नहीं है वज़ीफ़ा मिरा हैख़ुदा है मोहब्बत मोहब्बत ख़ुदा है, कहूँ किस तरह मैं कि वो
वो सिवा याद आए भुलाने के बाद ज़िंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद, दिल सुलगता रहा आशियाने
वो हमें जिस क़दर आज़माते रहेअपनी ही मुश्किलों को बढ़ाते रहे, वो अकेले में भी जो लजाते रहेहो
ज़िन्दगी खाक़ न थी बस खाक़ उड़ाते गुज़रीतुझसे क्या कहते, तेरे पास जो आते गुज़री, दिन जो गुज़रा
ज़रा सी देर ठहर कर सवाल करते हैसफ़र से आये हुओ का ख्याल करते है, मैं जानता हूँ
महफिले लूट गई जज़्बात ने दम तोड़ दियासाज़ ख़ामोश है नगमात ने दम तोड़ दिया, अनगिनत महफिले महरूम
दिल मेरा मिस्र का बाज़ार भी हो सकता हैकोई धड़कन का ख़रीदार भी हो सकता है, कोई हो