राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

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राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगाजी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा, शहरों को

पीत करना तो हम से निभाना सजन…

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पीत करना तो हम से निभाना सजनहम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन, तुम ही मजबूर

हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर माह-ए-तमाम हुए..

हिलाल-ए-शाम से

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुएहम हर बुर्ज में घटते घटते सुब्ह तलक गुमनाम हुए,

कुछ कहने का वक़्त नहीं कुछ न कहो ख़ामोश रहो

kuch kahne ka waqt

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहोऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

kis ko-paar-utara

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगेमल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे, मुँह

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा

kal-chaudawahi-ki-raat

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैं…

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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी

चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है

chalo-ye-ishq-nahi

चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत हैकि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है, तू अपनी शीशा-गरी

बहार रुत में उजाड़ रस्ते…

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बहार रुत में उजाड़ रस्तेतका करोगे तो रो पड़ोगे, किसे से मिलने को जब भीसजा करोगे तो रो

किसी के इश्क़ में रस्तों की धूल हो गए हैं…

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किसी के इश्क़ में रस्तों की धूल हो गए हैंख़ुदा का शुक्र कि पैसे वसूल हो गए हैं,