रंग मौसम का हरा था पहले

rang mausam ka hara tha pahle

रंग मौसम का हरा था पहले पेड़ ये कितना घना था पहले, मैं ने तो बाद में तोड़ा

जो कहीं था ही नहीं उस को कहीं ढूँढना था

jo kahin tha hi nahin us ko kahin dhoondhna tha

जो कहीं था ही नहीं उस को कहीं ढूँढना था हम को एक वहम के जंगल में यक़ीं

हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है

har ek saans hi hum par haram ho gayi hai

हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है ये ज़िंदगी तो कोई इंतिक़ाम हो गई है,

दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ

din ko din raat ko main raat na likhne paaoon

दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ उनकी कोशिश है कि हालात न लिखने पाऊँ,

यूँ देखिए तो आँधी में बस एक शजर गया

yun dekhiye to aandhi me bas ek shazar gaya

यूँ देखिए तो आँधी में बस एक शजर गया लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया, जैसे

अब छत पे कोई चाँद टहलता ही नहीं है

ab chhat pe koi chaand tahlta hi nahin

अब छत पे कोई चाँद टहलता ही नहीं है दिल मेरा मगर पहलू बदलता ही नहीं है, कब

मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा

main jis jagah bhi rahoonga wahi pe

मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा मेरा सितारा किसी दिन ज़मीं पे आएगा, लकीर खींच के

सड़क पे दौड़ते महताब देख लेता हूँ

sadak pe daudte maahtab dekh leta hoon

सड़क पे दौड़ते महताब देख लेता हूँ मैं चलता फिरता हुआ ख़्वाब देख लेता हूँ, मेरी नज़र से

कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है

kabhi kabhi kitna nuqsan uthana padta hai

कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है ऐरों ग़ैरों का एहसान उठाना पड़ता है, टेढ़े मेढ़े रस्तों पर

जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है

jal bujha hoon main magar saara jahan

जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है कोई तासीर तो मौजूद मेरी ख़ाक में है,