हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
Wasim Barelvi
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद्द हमारी है इस एक बात पे दुनिया से जंग
भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे हम आँसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे, हम ही ने
उदास एक मुझी को तो कर नही जाता वह मुझसे रुठ के अपने भी घर नही जाता, वह
अंधेरा ज़ेहन का सम्त ए सफ़र जब खोने लगता है किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता
तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे हम तो वो हैं तेरे चेहरे से दिखाई देंगे, हम
तहरीर से वर्ना मेरी क्या हो नहीं सकता एक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता,