जब छाई घटा लहराई धनक एक हुस्न ए मुकम्मल याद आया

jab chhaai ghata lahraai dhanak ek husn e muqammal

जब छाई घटा लहराई धनक एक हुस्न ए मुकम्मल याद आया उन हाथों की मेहंदी याद आई उन

कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो

koi sanam to ho koi apna khuda to ho

कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो इस दश्त ए बेकसी में कोई आसरा तो हो,

अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है

aks har roz kisi gam ka pada karta hai

अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है दिल वो आईना कि चुप चाप तका करता है,

घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं

ghatti badhti raushniyo ne mujhe

घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं मैं किसी पत्थर किसी दीवार का साया नहीं, जाने किन रिश्तों

समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

samndar me utarta hoon to aankhen

समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती

आँखों से मेरी इस लिए लाली नहीं जाती

aankhon se meri is liye laali nahi

आँखों से मेरी इस लिए लाली नहीं जाती यादों से कोई रात जो ख़ाली नहीं जाती, अब उम्र

मुझे बताया गया था यहाँ मोहब्बत है

mujhe bataya gaya tha

मुझे बताया गया था यहाँ मोहब्बत है मैं आ गया हूँ दिखाओ कहाँ मोहब्बत है ? यहाँ के

लिपट के सोच से नींदें हराम करती है

lipat ke soch se neende haram karti hai

लिपट के सोच से नींदें हराम करती है तमाम शब तेरी हसरत कलाम करती है, हमी वो इल्म

अब तो कोई भी किसी की बात नहीं समझता

ab to koi bhi kisi ki baat nahin

अब तो कोई भी किसी की बात नहीं समझता अब कोई भी किसी के जज़्बात नहीं समझता, अपने

हर एक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया

har ek ne kaha kyun tujhe

हर एक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया सुनते रहे हम लब पे तेरा नाम न आया,