क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ
क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ जो दिल को दे सुकून गुज़र हो
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क्या ग़म के साथ हम जिएँ और क्या ख़ुशी के साथ जो दिल को दे सुकून गुज़र हो
तू मुझ को सुन रहा है तो सुनाई क्यूँ नहीं देता ये कुछ इल्ज़ाम हैं मेरे सफ़ाई क्यूँ
ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं मैंने वक़्त से पहले टाँके खोले हैं, बाहर आने की भी
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी
तूने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी, शीश-महल को साफ़ किया तेरे कहने
ज़िंदगी की यही कहानी है साँस आनी है और जानी है, तुम जो होते तो बात कुछ होती
जले चराग़ बुझाने की ज़िद नहीं करते अब आ गए हो तो जाने की ज़िद नहीं करते, किसी
उफ़ुक़ अगरचे पिघलता दिखाई पड़ता है मुझे तो दूर सवेरा दिखाई पड़ता है, हमारे शहर में बे चेहरा
परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ सुकूत ए मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो
तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मेरे दिल से बोझ उतार दो मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे