लिपट के सोच से नींदें हराम करती है

lipat ke soch se neende haram karti hai

लिपट के सोच से नींदें हराम करती है तमाम शब तेरी हसरत कलाम करती है, हमी वो इल्म

अब तो कोई भी किसी की बात नहीं समझता

ab to koi bhi kisi ki baat nahin

अब तो कोई भी किसी की बात नहीं समझता अब कोई भी किसी के जज़्बात नहीं समझता, अपने

हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़ ए सफ़र जाएँगे

ham musafir yun hi masroof e safar

हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़ ए सफ़र जाएँगे बे निशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे, किस

तेरी उम्मीद तेरा इंतिज़ार जब से है

teri ummid tera intizar jab se hai

तेरी उम्मीद तेरा इंतिज़ार जब से है न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से

हर एक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया

har ek ne kaha kyun tujhe

हर एक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया सुनते रहे हम लब पे तेरा नाम न आया,

तेरे चेहरे की तरह और मेरे सीने की तरह

tere chehre ki tarah aur mere

तेरे चेहरे की तरह और मेरे सीने की तरह मेरा हर शेर दमकता है नगीने की तरह, फूल

यूँ तो वो हर किसी से मिलती है

yun to wo har kisi se milti hai

यूँ तो वो हर किसी से मिलती है हम से अपनी ख़ुशी से मिलती है, सेज महकी बदन

ज़बान ए ग़ैर से क्या शरह ए आरज़ू करते

zabaan e gair se kya sharah

ज़बान ए ग़ैर से क्या शरह ए आरज़ू करते वो ख़ुद अगर कहीं मिलता तो गुफ़्तुगू करते, वो

ग़म ए दौराँ ने भी सीखे ग़म ए जानाँ के चलन

gam e dauraan ne bhi sikhe

ग़म ए दौराँ ने भी सीखे ग़म ए जानाँ के चलन वही सोची हुई चालें वही बे साख़्तापन,

फ़नकार ख़ुद न थी मेरे फ़न की शरीक थी

fanqaar khud na thi mere fan ki

फ़नकार ख़ुद न थी मेरे फ़न की शरीक थी वो रूह के सफ़र में बदन की शरीक थी,