जब छाई घटा लहराई धनक एक हुस्न ए मुकम्मल याद आया
जब छाई घटा लहराई धनक एक हुस्न ए मुकम्मल याद आया उन हाथों की मेहंदी याद आई उन
Sad Poetry
जब छाई घटा लहराई धनक एक हुस्न ए मुकम्मल याद आया उन हाथों की मेहंदी याद आई उन
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो इस दश्त ए बेकसी में कोई आसरा तो हो,
अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है दिल वो आईना कि चुप चाप तका करता है,
घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं मैं किसी पत्थर किसी दीवार का साया नहीं, जाने किन रिश्तों
बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया मेरे दुख से किसी आवाज़ का रिश्ता निकल
चुपचाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो किस दर्द को कहते हैं वफ़ा तुम भी तो देखो,
रोज़ कहाँ से कोई नया पन अपने आप में लाएँगे तुम भी तंग आ जाओगे एक दिन हम
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती
आँखों से मेरी इस लिए लाली नहीं जाती यादों से कोई रात जो ख़ाली नहीं जाती, अब उम्र
मुझे बताया गया था यहाँ मोहब्बत है मैं आ गया हूँ दिखाओ कहाँ मोहब्बत है ? यहाँ के