ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ?

ae-likhne-wale-aakhir

ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर तुझे ही क्यूँ

अब अपने दीदा ओ दिल का भी ए’तिबार नहीं

ab-apne-deeda-o

अब अपने दीदा ओ दिल का भी ए’तिबार नहीं उसी को प्यार किया जिस के दिल में प्यार

आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया

aarzoo-ko-dil-hi

आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया और वो ये समझे कि मुझ को

इस बहते हुए लहू में मुझे तो

is bahte hue lahoo me

इस बहते हुए लहू में मुझे तो बस इन्सान नज़र आ रहा है लानत हो तुम पे तुम्हे

जिसने भी मुहब्बत का गीत गया है

jisne-bhi-muhabbat-ka

जिसने भी मुहब्बत का गीत गया है ज़िन्दगी का लुत्फ़ उसने ही उठाया है, मौसम गर्मी का हो

दुनिया में यूँ भी हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी

duniya-me-yun-bhi

दुनिया में यूँ भी हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी अपनी कहाँ है जैसे उधारी है ज़िन्दगी, आवाज़ मुझको ना

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

sansar-ki-har-shay

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है एक धुंध से आना है एक धुंध में जाना

मर चुका हूँ कई बार फिर भी कई बार मरना है

mar-chuka-hoo-kai

मर चुका हूँ कई बार फिर भी कई बार मरना है मरने से पहले ज़िन्दगी को रग रग

बात इधर उधर तो बहुत घुमाई जा सकती है

baat-idhar-udhar-to

बात इधर उधर तो बहुत घुमाई जा सकती है पर सच्चाई भला कब तक छुपाई जा सकती है

अब मुहब्बत का इरादा बदल जाना भी मुश्किल है

ab-muhabbat-ka-irada

अब मुहब्बत का इरादा बदल जाना भी मुश्किल है उन्हें खोना भी मुश्किल,उन्हें पाना भी मुश्किल है, ज़रा