तसव्वुर में भी जिसकी जुस्तुजू करता है दिल मेरा
तसव्वुर में भी जिसकी जुस्तुजू करता है दिल मेरा उसी से हिज्र में भी गुफ़्तुगू करता है दिल
Sad Poetry
तसव्वुर में भी जिसकी जुस्तुजू करता है दिल मेरा उसी से हिज्र में भी गुफ़्तुगू करता है दिल
हासिल हुई जब से आरज़ी शोहरते माल ओ ज़र के नशे में चूर हो गया, पा के ऊँचा
रोज़मर्रा वही एक ख़बर देखिए अब तो पत्थर हुआ काँचघर देखिए, सड़के चलने लगी आदमी रुक गया हो
हम प्यास के मारों का इस तरह गुज़ारा है आँखों में नदी लेकिन हाथो में किनारा है, दो
ये दिल टूट न जाए इस बात पर एक तरफ़ा ही ज़ोर लगाया मैंने, मेरे दिल की आवाज़
वो एक लफ़्ज़ जो बेसदा जाएगा वही मुद्दतों तक सुना जाएगा, कोई है जो मेरे तआक़ुब में है
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है अज़ल ही से वरक़ पर दिल के तेरा नाम लिखा
शरीक ए आलम ए कैफ़ ओ सुरूर मैं भी था कि रात जश्न में तेरे हुज़ूर मैं भी
मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो अच्छा था सफ़र में हमसफ़र अपना बना लेते तो अच्छा
नदी के पार उजाला दिखाई देता है मुझे ये ख़्वाब हमेशा दिखाई देता है, बरस रही हैं अक़ीदत