बे नियाज़ी के सिलसिले में हूँ

be niyazi ke silsile me

बे नियाज़ी के सिलसिले में हूँ मैं कहाँ अब तेरे नशे में हूँ, हिज्र तेरा मुझे सताता है

दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की

dukh aur tarah ke hai dua aur

दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की और दामन ए क़ातिल की हवा और तरह की,

दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों

dil bhi bujha ho sham ki

दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों, आँखों

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़…

mazlumo ke haq me ab awaz

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़ उठाये कौन ? जल रही बस्तियाँ,आह ओ सोग मनाये कौन ? कौन

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं

thik hai khud ko ham badalte hai

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं, हो रहा हूँ मैं किस तरह

गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी…

gamon ka lutf uthaya hai khushi ka jaam baandha hai

गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल का हर एक

यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि…

yun apni gazalon me na jatata ki

यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि मोहब्बत क्या है गर मिलते तो कर के दिखाता कि मोहब्बत

आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई

ayat e hizr padhi aur rihai paai

आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई हमने दानिस्ता मुहब्बत में जुदाई पाई, जिस्म ओ इस्म था जो

सज़ा पे छोड़ दिया, कुछ जज़ा पे छोड़ दिया

saza pe chhod diya kuch jaza pe chhod diya

सज़ा पे छोड़ दिया, कुछ जज़ा पे छोड़ दिया हर एक काम को अब मैंने ख़ुदा पे छोड़

उसको जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ

usko jaate hue dekha tha pukara tha kahan

उसको जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ रोकते किस तरह वो शख़्स हमारा था कहाँ, थी कहाँ