और क्या करता बयान ए गम तुम्हारे सामने
और क्या करता बयान ए गम तुम्हारे सामने मेरी आँखें हो गई पुरनम तुम्हारे सामने, हम जुदाई में
Sad Poetry
और क्या करता बयान ए गम तुम्हारे सामने मेरी आँखें हो गई पुरनम तुम्हारे सामने, हम जुदाई में
चौंक चौंक उठती है महलों की फ़ज़ा रात गए चौंक चौंक उठती है महलों की फ़ज़ा रात गए
ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का सम्भल भी जा कि
मेरा ख़ामोश रह कर भी उन्हें सब कुछ सुना देना ज़बाँ से कुछ न कहना देख कर आँसू
ऐ मेरे हम नशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं, बात होती गुलों
भीगा हुआ है आँचल आँखों में भी नमी है फैला हुआ है काजल आँखों में भी नमी है,
जिस वक़्त वालिदैन ने जनाज़े उठाये होंगे उस वक़्त कितने खून के आँसू बहाए होंगे, मुंसफ सज़ा कहाँ
हक़ मेहर कितना होगा बताया नहीं गया शहज़ादियों को बाम पे लाया नहीं गया, कमज़ोर सी हदीस सुना
दिल ए बेताब की मुझको हिमायत अब नहीं करनी मुझे आज़ाद रहना हैं मुहब्बत अब नहीं करनी, गिला
कैसे होता है मुमकिन ये गवारा करना दिल में बसे हुए लोगो से किनारा करना, कुछ मुहब्बत के