मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

main zindagi ka saath

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया, बर्बादियों का सोग

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

kabhi khud pe kabhi

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया, हम

अब अहल ए दर्द ये जीने का एहतिमाम करें

ab ahal e dard

अब अहल ए दर्द ये जीने का एहतिमाम करें उसे भुला के ग़म ए ज़िंदगी का नाम करें,

मुझ से कहा जिब्रील ए जुनूँ ने ये भी वहइ ए इलाही है

mujh se kaha jibril

मुझ से कहा जिब्रील ए जुनूँ ने ये भी वहइ ए इलाही है मज़हब तो बस मज़हब ए

रहते थे कभी जिन के दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह

rahte the kabhi jin

रहते थे कभी जिन के दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह बैठे हैं उन्ही के

मसर्रतों को ये अहल ए हवस न खो देते

masarraton ko ye ahal

मसर्रतों को ये अहल ए हवस न खो देते जो हर ख़ुशी में तेरे ग़म को भी समो

ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें

ye ruke ruke se

ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म ए ज़िंदगी निबाहें,

किसी ने भी तो न देखा निगाह भर के मुझे

kisi ne bhi to

किसी ने भी तो न देखा निगाह भर के मुझे गया फिर आज का दिन भी उदास कर

आह ए जाँ सोज़ की महरूमी ए तासीर न देख

aah e jaan soz

आह ए जाँ सोज़ की महरूमी ए तासीर न देख हो ही जाएगी कोई जीने की तदबीर न

ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो

Ae Dil mujhe aisi

ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो अपना पराया मेहरबाँ ना मेहरबाँ कोई न