कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा वो जो मिल गया उसे याद
Sad Poetry
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा वो जो मिल गया उसे याद
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है समुंदरों ही के लहजे में बात करता है, खुली छतों
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता, पहुँचा है
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता मगर इन एहतियातों से तअ’ल्लुक़ मर नहीं
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे ? घर सजाने
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता,
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से, ऐ रूह-ए-अस्र जाग
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम, मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न