कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा

kahan aa ke rukne

कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा वो जो मिल गया उसे याद

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

zara saa qatara kahin

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है समुंदरों ही के लहजे में बात करता है, खुली छतों

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता

dukh apna agar hum

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता, पहुँचा है

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता

wo mere ghar nahin

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता मगर इन एहतियातों से तअ’ल्लुक़ मर नहीं

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे

apne chehre se jo

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे ? घर सजाने

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

kya dukh hai samundar

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता,

मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने

mohabbat tark ki mai

मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

dekha hai zindagi ko

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से, ऐ रूह-ए-अस्र जाग

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

tum apna ranj o

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

tang aa chuke hai

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम, मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न