दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है
दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है जो तेरे इश्क़ में दीवाना नज़र आता है, इश्क़ ए
Sad Poetry
दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है जो तेरे इश्क़ में दीवाना नज़र आता है, इश्क़ ए
मुझे रंज होगा न मौत का अगर ऐसी मौत नसीब हो मेरा दम जो निकले तो ऐ ख़ुदा
आग भी दिल में लगी है और अश्क ए ग़म भी है इश्क़ कहते हैं जिसे शोला भी
यार के सामने अग़्यार बुरे लगते हैं फूल होता है जहाँ ख़ार बुरे लगते हैं रात के फूल
आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में सदियाँ गुज़र गई हैं इसी इंतिज़ार में, छिड़ते ही साज़
नील गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद माँ की लोरी सा बच्चे के दूध कटोरे
यूँ लग रहा है जैसे कोई आस पास है वो कौन है जो है भी नहीं और उदास
उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है जो हुआ वो न हुआ होता ये ग़म
मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ दुनिया के कारोबार में हूँ भी नहीं भी हूँ,
उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा, इतना सच