दुश्मन है कौन और मेरा यार कौन है
दुश्मन है कौन और मेरा यार कौन है खुलता नहीं कि बरसर ए पैकार कौन है ? दरिया
Sad Poetry
दुश्मन है कौन और मेरा यार कौन है खुलता नहीं कि बरसर ए पैकार कौन है ? दरिया
सरबुरीदा कोई लश्कर नहीं देखा जाता हम से ये ज़ुल्म का मंज़र नहीं देखा जाता, अपनी आँखों को
बदला मिज़ाज मैं ने जो अपना हवा के साथ दरिया था मेरे साथ किनारा हवा के साथ, फिर
बे सोज़ ए निहाँ महव ए फ़ुग़ाँ हो नहीं सकता जब तक न लगे आग धुआँ हो नहीं
ग़ैरों के जब भी लुत्फ़ ओ करम याद आ गए अपनों ने जो किए थे सितम याद आ
ग़म ए जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ को हँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी
ऐसा तूफ़ाँ है कि साहिल का नज़ारा भी नहीं डूबने वाले को तिनके का सहारा भी नहीं, की
गेसू रुख़ ए रौशन से वो टलने नहीं देते दिन होते हुए धूप निकलने नहीं देते, आँचल में
दोस्तों के सितम की बात करो बात ग़म की है ग़म की बात करो सच्ची बातों के हो
वक़्त जब साज़गार होता है सच है दुश्मन भी यार होता है, बाँट ले ग़म जो ग़म के