सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं हम सर ए ज़ुल्फ़ ए गिरह गीर लिए फिरते हैं, कौन
Sad Poetry
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं हम सर ए ज़ुल्फ़ ए गिरह गीर लिए फिरते हैं, कौन
जान हम तुझ पे दिया करते हैं नाम तेरा ही लिया करते हैं, चाक करने के लिए ऐ
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया,
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे, तुम्हारे बस
क़ैद शीशे में रहूँ अक्स बनूँ शाद रहूँ या कि फिर फोड़ के ये आइना आज़ाद रहूँ यूँ
किसी को नींद मिली तो किसी को ख़्वाब मिला हर एक बशर को याँ मौक़ा ए इंतिख़ाब मिला,
हम अब क्या बताएँ कहाँ तक गए गुमाँ के मुसाफ़िर गुमाँ तक गए, हिसार ए जहाँ तक है
ये जिस्म मेरा थक के बहुत चूर हुआ है किस कार ए मुसलसल पे ये मामूर हुआ है
कोई हसरत कोई अरमान नहीं रखते हैं हम तो मुद्दत से ये सामान नहीं रखते हैं, ज़ख़्म रखते
वो ज़ख़्म छोड़ो अब जिसका निशान बाक़ी नहीं सो मेरे हक़ में कोई भी बयान बाक़ी नहीं, बच्चे