पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं तुम शहर ए मोहब्बत कहते हो …
Sad Poetry
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं तुम शहर ए मोहब्बत कहते हो …
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ …
बख़्श दे कुछ तो एतिबार मुझे प्यार से देख चश्म ए यार मुझे, रात भी चाँद भी समुंदर …
मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या तेरा बदन कोई शमशीर ए बे नियाम है …
तेरी जुदाई ने ये क्या बना दिया है मुझे मैं भी जिस्म था साया बना दिया है मुझे, …
न वो मिलता है न मिलने का इशारा कोई कैसे उम्मीद का चमकेगा सितारा कोई ? हद से …
लिबास तन से उतार देना, किसी को बांहों के हार देना फिर उसके जज़्बों को मार देना, अगर …
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है न करम है हम पे …
असर उस को ज़रा नहीं होता रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता, बेवफ़ा कहने की शिकायत है तो भी …
, गुलों के रुख़ पे वही ताज़गी का आलम है न जाने उन को ग़म ए रोज़गार क्यूँ …