जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है
जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है उसके मुक़द्दर में जन्नत की हवाएँ होती है, जिसे माँ
Religious Poetry
जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है उसके मुक़द्दर में जन्नत की हवाएँ होती है, जिसे माँ
जो कहीं ना मिले वो ख़ुशी चाहिए दर्द चाहे कैसा भी हो बंदगी चाहिए, मुझे अब ख्वाहिश ए
ये नहर ए आब भी उस की है मुल्क ए शाम उस का जो हश्र मुझ पे बपा
मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ दुनिया के कारोबार में हूँ भी नहीं भी हूँ,
ज़माने की हवा बदली उधर रंग ए चमन बदला गुलों ने जब रविश बदली अनादिल ने वतन बदला,
हिन्द का आज़ाद हो जाना कोई आसाँ नहीं देखना तुम को अभी क्या क्या दिखाया जाएगा, देखना तुम
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है, इतनी ख़ूँ-ख़ार
इन्सान हूँ इंसानियत की तलब हैकिसी खुदाई का तलबगार नहीं हूँ, ख़ुमारी ए दौलत ना शोहरत का नशाअबतक
मुझ से कहा जिब्रील ए जुनूँ ने ये भी वहइ ए इलाही है मज़हब तो बस मज़हब ए
है आम अज़ल ही से फ़ैज़ान मोहब्बत का इम्कान मुसल्लम है इम्कान मोहब्बत का, तोड़ा नहीं जा सकता