किए वादों का निभाना बाक़ी है
किए वादों का निभाना बाक़ी है और अभी उनको मनाना बाक़ी है, मुझे अपना भी समझना बाक़ी है
Political Poetry
किए वादों का निभाना बाक़ी है और अभी उनको मनाना बाक़ी है, मुझे अपना भी समझना बाक़ी है
वो बड़े बनते हैं अपने नाम से हम बड़े बनते है अपने काम से, वो कभी आग़ाज़ कर
संगदिल कहाँ किसी का गमगुसार करते है ये मुर्दा ज़मीर कब मज़लूमो से प्यार करते है, ना फ़िक्र
ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है कि ख़ुदा सब देख रहा है वो अंजान
जितने हरामखोर थे क़ुर्ब ओ जवार में परधान बनके आ गए अगली क़तार में, दीवार फाँदने में यूँ
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाह ए वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी फिर कहाँ से बीच में मस्ज़िद ओ मंदिर आ गए ?
भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ? न रहा सत्ता का यकीं हमको, न सत्ता
रंगों की आड़ में खुनी खेल, ये इंसानियत क्या जाने ? हरा, भगवा में डूबे हुए केसरिया का
बात करते है यहाँ क़तरे भी समन्दर की तरह अब लोग ईमान बदलते है कैलेंडर की तरह, कोई