बशर तरसते है उम्दा खानों को मौत पड़ती है हुक्मरानो को…

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बशर तरसते है उम्दा खानों को मौत पड़ती है हुक्मरानो को, ज़ुर्म आज़ाद फिर रहा है यहाँ बेकसों

बशर तरसते है उम्दा खानों को…

बशर तरसते है उम्दा

बशर तरसते है उम्दा खानों को मौत पड़ती है हुक्मरानो को, ज़ुर्म आज़ाद फिर रहा है यहाँ बेकसों

सब गुनाह ओ हराम चलने दो….

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सब गुनाह ओ हराम चलने दो कह रहे है निज़ाम चलने दो, ज़िद्द है क्या वक़्त को बदलने

ज़हालत की तारीकियो में गुम अहल ए वतन को

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ज़हालत की तारीकियो में गुम अहल ए वतन को वो ले कर तालीम की मशाल रास्ता दिखाने चला

अपनी ज़रूरत के मुताबिक़….

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अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ लोगो के जज़्बात बदल जाते है, इंसानों की इन्हें फिक़र नहीं मगर ये हैवानो